पानी की कहानी, मेरी जुबानी
पुराणों में हमने सुनी
अमृत विष की कहानी,
एक बार मेरे मन ने
इसको जानने को ठानी।
मैंने लोगों से पूछा!
यह अमृत विष की क्या है कहानी।
बोले लोग मैं नहीं जानता
यह तो देव ही जाने।
मेरे मन में आ रहा था प्रश्न!
यह अमृत – विष क्या है चक्कर?
इसको जानने के लिए मैंने लगाया
इंद्र लोक का चक्कर।
मैं पहुंची सीधे इंद्र देव के दरबार ,
बोली हे देवों के देव मुझको यह बताएँ,
यह अमृत-विष क्या है?
मुझकों भी समझाएँ।
इंद्र देव मंद-मंद मुस्काए
और बोले ऐं मूर्ख अज्ञानी ।
यह कुछ और नही ,
यह था धरती का पानी।
जो पानी निर्मल और शुद्ध था
वह था अमृत का पानी
और जो था मेला और अशुद्ध
वह था विष का पानी।
मैं बोल उठी हे देव
जब पानी ही अमृत – विष था
यह बात आपने पहले क्यो न बताया
इस अमृत – विष के चक्कर में ,
हमें क्यो घुमाया।
सारे जग में हम सब
अमृत को ढूँढ रहे थे ,
यह क्या है? कैसा दिखता है?
इसको खोज रहें थे,
और सामने पड़े अमृत को हम
धीरे- धीरे खो रहे थे।
यह तो ऐसा था मानो
कोई मृग कस्तूरी को वन – वन
ढूँढ रहा हो ,
और उसको यह पता नहीं है कि
उसका कस्तूरी उसके नाभि मे पड़ा हैं।
यह सुन देव लगे बोलने
मैंने अपने ढंग से तुमको
यह बात समझाया था ,
पर तुमने तो इसको समझने के लिए
कभी अपना अक्ल ही न लगाया था।
शुद्ध पानी होता है जीवन के लिए वरदान ।
इसको पीने से बढ़ता है
लम्बी तेरी प्राण।
यह स्वास्थ के लिए होता है बड़ा ही अनमोल,
इसलिए इसको जीवन का
अमृत कहा गया है।
रहा सवाल तेरे विष का
वह था धरती का मैला पानी ।
जिसको पीने से जीवन पर
पहुँचता हैं बड़ा ही हानि।
यह तेरे जीवन की डोर को
कम कर देता है ,
और तेरे स्वास्थ को
पहुँचता हैं बहुत ही हानि।
अब भी समझे या न समझे
ऐ मुर्ख अज्ञानी
और अब तो मैंने बता दी
तुमको अमृत – विष की सारी कहानी।
एक बात मै और बता दूं
फिर न कहना पता नहीं था
उस समय जो हुई लड़ाई
वह भी पानी के लिए हुआ था।
पानी का जो रूप हे अमृत
उसके लेकर देवों और राक्षसों
के बीच युद्ध छिड़ा था,
और उस समय भी हमने हीरे ,पन्ने जवाहरातो से
ज्यादा महत्व पानी को दिया था।
अब तो धरती पर जाकर
अपना अमृत बचा लो
और इसको विष में बदलने से
पहले तुम इसको सम्भाल लो।
अब कोई शिव शम्भु तेरा
विष पीने न आएँगे ,
और तुम जो पानी में विष घोल रहे हो
इससे हम भी तुमको न बचा पाएँगे।
इसलिए पानी बचाओ
नहीं तो फिर युद्ध छिड़ेगा
और इसका परिणाम
तुम सब को फिर भुगतना पड़ेगा।
~अनामिका