पानीपूरी और बरसात (हास्य )
यूँ तो मेरे पति मेरा बहुत ध्यान रखते है पर जब सटते है तो फिर बाप रे
बरसात के दिन थे ।एक बार हम बाजार गये । हल्की बून्दाबान्दी हो रही थी लौटते समय मैने पानी पूरी की मांग की । पानी अब तेज हो चला था ।उन्होंने कहा कि अगली बार खा लेना लेकिन मैं कहाँ मानने वाली थी ।पानी पूरी के एक ठेले पर ये खड़े हो गये । पानी पूरी वाला बोला :”साब पानी रूक जाऐ तब खिला दूँगा। ” वो थोडी दूर पर एक झज्जे के नीचे खडा था । लेकिन ये बरसते पानी मे ही भीगते हुऐ पानीपूरी वाला बन कर पानीपूरी बना कर गिन कर मुझे खिलाने लगे और बीच बीच में खुद भी खाने लगे । सब लोग और पानीपूरी वाला मजा ले रहे थे ।
फिर तीस पानी पूरी के पैसे दुकानदार को देकर आगे बढे ।
सच में उनके सटने में भी कभी कभी मजा आ जाता है
आय लव यू पति जी।
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल