पाथ
चल बटोही चल
बसेरे की पहचान में। ।।।।।।।
खग उडे अम्बर में
फिर भी बसेरे से दूर
चारो तरफ विचरण करे
क्यो होवे मजबूर
बढता निरन्तर
वह आन में। ।।।।।।।१
चल बटोही चल
बसेरे की पहचान में।।।।।।।।।।
एक मुशाफिर मंजर पे खडा
मार्ग की पहचान मे
दूर जाना है उसे
किसी के इन्तजार में
बढ रहा पथवार से
मानो मंजर हो सामने।।।।।।।।२
चल बटोही चल
बसेरे की पहचान में।।।।।।।।।
एक मुशाफिर चला
मधूशाला की और
प्याले भी उसने लिय
किसी खुशी में दो ओर
चल पडा गिरते पडते
अपनी मंज़िल की शान में।।।।।।।।३
चल बटोही चल
बसेरे की पहचान में।।।।।।।।।
समय की रेख
धीरे धीरे है बढती
मानो यैसे मूटठी से
यू है रेत सरकती
करके इन्तजार
बक्से न किसी की जान में।।।।।।।।।।४
चल बटोही चल
बसेरे की पहचान में।।।।।।।।।।