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4 Jul 2024 · 1 min read

पागल हो जनता चली,

पागल हो जनता चली,
बाबाओं के द्वार ।
धक्के खाये सौ मगर,
हुआ न कुछ उद्धार ।।

सुशील सरना / 4-7-24

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