{{{ पागल दीवानी }}}
इश्क़ में तेरे मैं पागल दीवानी सी फिरती हूँ ।
अपने में खोई गुमसुम सी रहती हूँ ।।
तूने कभी कोशिश ही नही की मुझे पढ़ने की ,
उदास दिल में जाने तुमसे, कितना कुछ कहती हूँ ।।
एक शख्स जो मेरे दिल का सरताज़ बन गया,
दर्द भी दे तो उसी में लिपटी रहती हूँ ।।
सारे हर्फ़ तेरे इन्तेज़ार में, तेरे नाम के लिखे है मैंने ,
तू आया नही मैं पागल बन दरवाजे पे बैठी रहती हूँ ।।
अपने ही दिमाग के ताने मैं रोज़ सुनती हूँ ,
तुझे वो पागल कर गया,फिर क्यों उसके सपने बुनती हूँ ।।
जाने कितने खत लिखे उसे, दिल के सारे हालात बताए,
नींद आँखों से कोसो दूर, पूरी रात आँसुओ की तरह ढलती हूँ ।।
फिर भी हर दुआ तेरे नाम की ही कि है मैंने,
तेरे नज़र में मैं पागल ही सही, फिर भी तुमसे ही प्यार करती हूँ।।
तेरे हर गुस्से को सहा है मैंने, तेरा प्यार समझ कर,
तुझमे ही कैद सारी खुशियां मेरी, तुझे ही दुनिया समझती हूँ ।।