पाई फागुन में गई, सिर्फ विलक्षण बात (कुंडलिया)
पाई फागुन में गई, सिर्फ विलक्षण बात (कुंडलिया)
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पाई फागुन में गई , सिर्फ विलक्षण बात
दिन में भी बरसे शहद , महकी-महकी रात
महकी-महकी रात, पवन संगीत सुनाता
गीत गा रहे फूल , पेड़ नवयौवन पाता
कहते रवि कविराय ,मस्त ऋतु यह कहलाई
फागुन है ऋतुराज , न समता इसकी पाई
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
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विलक्षण = अद्भुत ,असाधारण ,अनोखा