पांचों उंगलियां बराबर नहीं होती…
हमारे बड़े बुजुर्ग कह गए हैं ,
पांचों उंगलियां बराबर नहीं होती ।
जन्म देता है विधाता सभी को ,
मगर सबकी तबियत एक सी नहीं होती ।
सभी धर्मों में सभी तरह के होते है लोग ,
किसी प्रकृति किसी दूसरे से नही मिलती।
कोई होते है बदमाश ,पथभ्रष्ट ,दुष्ट लोग ,
सभी में शराफत और नेकदिली नही होती ।
एक ही परिवार में भी सभी संताने समान नहीं होती ,
कोई होता शांत स्वभाव का और कोई बहुत क्रोधी ,
यहां भी परस्पर बच्चों की प्रकृति नही मिलती ।
बात बात पर लड़ते है होते है एक दूजे के विरोधी ।
फिर यह तो राष्ट्र है इतनी विशाल जनसंख्या यहां ,
तरह तरह के भाषा भाषी ,धर्म , जाति , क्षेत्र वासी।
इनकी परस्पर भला कैसे मिल सकती है प्रकृति ।
मगर है तो सब एक ही देश के वासी।
कोई करे गुस्ताखी ,दंगा फसाद या फैलाए अराजकता,
तो इसका ठीकरा उसकी पूरी जाति पर क्यों फोड़ा जाए।
दोष कोई करे और बदनाम हो सारी जाति,/ धर्म ,
यह तो न्याय नहीं अन्याय ही कहा जाए.
सभी धर्म और जाति में सभी तरह के लोग होते है ,
कोई बहुत अच्छे तो कोई बहुत बुरे भी हो सकते है ।
इसीलिए बेहतर है बुरे को छोड़ दो ,अच्छे से निभाओ ,
बुरे भी सज्जनता के प्रभाव से है सुधर जाते हैं ।
परिवार या देश को मजबूत और शांतिप्रिय बनाना है ,
तो अपने बहन भाइयों की तबियत की पहचान करो ।
उनकी दोषों का उपचार कर अच्छाई को उभारों ,
इसी को सुखी और संपन्न देश / परिवार कहते हैं ।