पाँव पर जो पाँव रख…
पाँव पर जो पाँव रख चलना सिखाते।
हाथ में ले हाथ जो बढ़ना सिखाते।
भूल वो उपकार उनके, सिर उठाते।
आज हम अपने बड़ों का दिल दुखाते।
माँग सब जब वो हमारी पूरते थे।
भाग्यशाली हम स्वयं को मानते थे।
बात उनकी पर कहाँ हम मानते थे।
वो मनाते हम प्रलय की ठानते थे।
बेवजह ही आज उनको दोष देते।
किस नशे में चूर हो यूँ होश खोते।
क्या सिला उस प्यार का हम दे रहे हैं,
क्यों उन्हें हम यूँ अकेला छोड़ देते ?
आज जब वो खाट पर असहाय लेटे।
देख कर भी मूँद लेते आँख बेटे।
क्या यही संस्कार हैं इस संस्कृति के ?
फँस गए चंगुल अहो किस विकृति के ?
गल्तियाँ सब मान अपनी लें शपथ हम।
भूल से भी ना वरेंगे अब कुपथ हम।
भावभीने पुष्प पगतल में चढ़ाते।
पूत चरणों में पिता के सिर झुकाते।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )