पहेली है सुलझाओ तो जाने..,
खुद-गर्ज जमाना,
बड़ा एहसान-फ़रोस निकला,
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मेरा शौक नहीं जरूरत थी,
बीवी ने रोका.. बच्चों ने टोंका,
जीते जी नहीं गया टोटा,
लिखे बगैर रहा न गया,
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जरूरतें सीमित थी,
बिन फ्लैट.. गाड़ी बिना,
सालों बीते..,
जैसा अंतस् मेरा है..वैसा दुनिया का नहीं निकला,
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जहां भी गया..जिसने जो मांगे सो दिया,
मुझे मेरे नाम पर..ठेंगा ही मिला,
पर असफलताओं का दौर न रुका,
तारिफ़ ए नाम बढ़ने लगी..पूँजी संचित जो हुई.. अब मिलने लगी,
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अब खुश है बीवी..नहीं टोंकते बच्चे..!!