पहाड़ो के सामने
दूर दिखता वो किनारा, पास आ जाये कभी
फिर शिखर वो आसमाँ का, छूले वो पत्थर कभी
दूर बहती वो नदी, पास आ गुनगुनाये कभी
हरियाली मैदान की, ख़ामोशी मे जंगल कभी
दूर बजती बांसुरी, मन को चुराकर खींच ले
धड़कने ऊँची बढ़ा के, ले जाये वो दिल कंही
सिलसिला यूँ यादों का, शुरू करके छोड़ दें
ख़ामोशी को तोड़ दे, गीत गाती कोयल कंही
कितने बरस बीते यंही, पास आने की चाह मे
फूल बन आंसू , गिरे कितने राह मे
रात कटती शाम ढलती, याद मे फरियाद मे
टूटती जर्जर हुयी वो, याद मे फिर याद मे
-आदित्य चमोली, नोएडा