पहाड़ों की पुकार
लाखों करोड़ों सालों की
भूगर्भीय घटनाओं से बने हम
हर वक्त अपना सीना ताने
हर मुश्किल में भी खड़े हम ।।
हमेशा बर्फ से लदे रहते है हम
दुनिया का ताप बढ़ने नहीं देते
नदियों का है भी है स्त्रोत हम
दुश्मन को आगे बढ़ने नहीं देते ।।
केवल बर्फ ही नहीं
प्रकृति ने जंगल से नवाजे हम
ऊंचे ऊंचे वृक्षों से हरपल
ताज़ा हवा दुनिया को देते है हम ।।
है हमारा अस्तित्व इन्सान
के लिए बेहद ज़रूरी
जानते हुए भी इन्सान की
हम पर है नियत बुरी ।।
एक तरफ पेड़ों को अंधाधुंध
काट रहा है इंसान
फैक्ट्रियों के काले धुएं से मौत
बांट रहा है इंसान ।।
पहाड़ों को खोद उनमें
सुरंगे बना रहा इंसान
पहाड़ों को काट कर सड़कों
का जाल बिछा रहा इन्सान ।।
यहां तक की पथरों को भी
नहीं छोड़ रहा इंसान
नदियों से बालू हटा रहा इंसान
विकास के नाम पर ही
ये सबकुछ कर रहा है इंसान ।।
इंसानों ने अपने स्वार्थ के लिए
मुझको कमज़ोर किया है
अंधाधुंध औद्योगिकरण से
धरती का ताप बढ़ाने पर ज़ोर दिया है ।।
हिमखंडों का टूटना, भूस्खलन
और बाढ़ जैसी घटनाओं को
प्राकृतिक आपदा कह कर इंसान
अपना पल्ला झाड़ रहा है
अपने कृत्यों के परिणामों को
प्रकृति पर डाल रहा है ।।
जो अब नहीं जागा इंसान
तो बहुत देर हो जायेगी
हिमखंड अगर पिघल गए तो
दुनिया तबाह हो जाएगी
बाढ़ और भूस्खलन की
घटनाएं बढ़ती जाएगी ।।
विकास होना चाहिए
परन्तु संतुलित होना चाहिए
पहाड़ों का होना इंसानी सभ्यता
के होने के लिए ज़रूरी है ।।
इंसान को अब तो ये
समझना ज़रूरी है
पहाड़ों की सुरक्षा का भी
ध्यान रखना जरूरी है ।।