“पहाड़ी झरना”
पहाड़ो और चट्टानों के गर्भ से
बुंद – बुंद कर निकलती
एक छोटी सी जल स्रोत
निर्मल और शांत बन
कल कल करती हुई
टेढ़े – मेढ़े रास्तों पर
अठखेलियाँ करती हुई
बहती जा रही, बढ़ती जा रही…
एक नवजात शिशु की तरह
निश्छल शांत
कुछ फासले तय करने पर
धारण करती है झरने का स्वरुप।
अनवरत बहती है
प्रगति के पथ पर
विशाल वृक्षों से खेलती
लताओं से लिपटती
शिलाओं के बीच मुस्काती
अपनी एक नई राह पर
समेटे अपने संघर्ष की कहानी
मिलते जा रहे इसके राहों में
छोटे – छोटे अनेक जल स्रोत
बदलता जा रहा है
पग – पग पर
दिन ब दिन इसका नया स्वरुप।
जीव – जंतुओं के
पिपासा को शांत कर
गर्व से भरी हुई
बिना रुके, बिना झुके
बिना थके, अनवरत
फासलों को तय करते हुए
रचती हुई नवीन इतिहास
पाने को विश्रांति
आखिर एक दिन
मिल जाती है सागर में
समाहित करती जीवन को
समंदर के गहरे जल में
खो जाता है अस्तित्व।
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