पहले वाली शाम नहीं
पहले वाली शाम नहीं
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पहले वाली शाम नहीं,
मिलते उत्तम दाम नहीं।
पनपे मन में पाप सदा,
मंदिर में अब राम नहीं।
अनदेखा सा देख करें,
बे मतलब है काम नहीं।
धन – माया में डूब रहे,
दो पल का आराम नहीं।
मनसीरत ईनाम कहाँ,
बचता अब ईमाम नहीं।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)