पहले निभते थे जान से रिश्ते
पहले निभते थे जान से रिश्ते
अब कहाँ वो महान से रिश्ते
आँधियाँ स्वार्थ की चलीं कैसी
मन में इच्छाएं भी पलीं कैसी
मिट रहे हैं जहान से रिश्ते
पहले निभते थे जान से रिश्ते
बेटियाँ शहर की थीं तब अपनी
बात त्योहारों की अजब अपनी
अब तो होते विरान से रिश्ते
पहले निभते थे जान से रिश्ते
भाई भाई में अब नहीं छनती
अपने माँ बाप से नहीं बनती
रहते हैं अब न मान से रिश्ते
पहले निभते थे जान से रिश्ते
आज तो तेरा मेरा नाता है
कल वो चेहरा नहीं सुहाता है
हो गये पीकदान से रिश्ते
पहले निभते थे जान से रिश्ते
17-05-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद