पहले की औरतों के भी ख़्वाब कई सजते थे,
पहले की औरतों के भी ख़्वाब कई सजते थे,
जो प्रायः घर-परिवार व रिश्तेदारों तक ही रहते थे!
आज की औरतें भी ढेरों ख़्वाब सजाती हैं…
ठुकराकर रिश्ते-नाते आसमां में परवाज़ भर जाती हैं!
…. अजित कर्ण ✍️
पहले की औरतों के भी ख़्वाब कई सजते थे,
जो प्रायः घर-परिवार व रिश्तेदारों तक ही रहते थे!
आज की औरतें भी ढेरों ख़्वाब सजाती हैं…
ठुकराकर रिश्ते-नाते आसमां में परवाज़ भर जाती हैं!
…. अजित कर्ण ✍️