“ पहली पोस्टिंग में हुआ हिमांचल दर्शन “
( संस्मरण )
डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
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कठोरतम मिलिटरी प्रशिक्षण के बाद हम बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे थे कि भाग्य को जो भी मंजूर होगा भारत के किसी भी स्थान पर हमलोगों की पोस्टिंग होगी ! अब हमें उन सख्त प्रशिक्षणों से नहीं गुजरना होगा ! खुशी का आलम चारों तरफ फैला हुआ था ! सब प्रशिक्षणार्थी ,सहपाठी ,मित्र और कुछ ग्रामीण लोगों का एक साथ रहना और सँग -सँग 3 वर्ष 4 महीने तक एक साथ प्रशिक्षण करना ,सुख -दुख में साथ -साथ रहना मनो एक नए परिवार का सृजन हो गया था ! बस उनलोगों से बिछुड़ना , भारत के किसी कोने में जाना और वो भी नए परिवेशों में ,थोड़ी सी खल तो अवश्य रही थी ! पर यह तो मानना ही था कि तमाम सैनिकों को इसी प्रशिक्षण ने “ आत्म निर्भर “,साहसी “आज्ञाकारी ,” अनुशासित और कर्मठता के साँचे में ढाल दिया था ! आग में तपा के एक खरा सोना बनाया गया था ! आखिर किसे नहीं चाहत होती है कि आने वाले कल के अध्याय को पढ़ें और सुनहरे भविष्य की परिकल्पना करें ?
12,दिसम्बर 1975 संध्या काल सबों की लौटेरी खुली ! भारत के विभिन्य सैनिक अस्पतालों और यूनिटों में सबकी पोस्टिंग हुयी ! मेरी पोस्टिंग सैनिक अस्पताल योल कैम्प हिमांचल प्रदेश हुयी ! उत्सुकता लोगों में व्याप्त थी “ कहाँ है ? कैसा है ? और जाने का साधन क्या है ?” उन्हीं प्रांत के लोगों से वहाँ के विषय में पुँछते थे ! मेरे साथ में बिहारी लाल डोगरा और शमशेर सिंह डोगरा कंगड़ा जिला ,हिमांचल प्रदेश के ही थे ! उनदोनों से पूँछा तो सांत्वना देते हुए शमशेर ने कहा ,
” तुम बहुत लक्की हो ,बहुत सुंदर स्थान पर तुम्हारी पोस्टिंग हुई है ! मैं भी वहीं का रहनेवाला हूँ !“
बिहारी लाल ने भी अपनी सहमती जतायी ! वैसे सब एक दूसरे को ढाढ़स इसी तरह देते हैं ! किसी से कोई पूँछ ले पर किसी को किसी भी प्रान्त के जगहों की आलोचना करते आप नहीं पाएंगे ! थोड़ी बहुत चिंता थी ! घर से तकरीबन 1900 किलोमीटर दूर हो जाएंगे !
18 ,दिसम्बर 1975 को लखनऊ से पठानकोट के लिए रवाना हो गया ! लोगों ने बताया था पठानकोट बस अड्डे से बस योल कैम्प जाएगी ! दूसरे दिन पठानकोट पहुँच गए ! फिर बस यात्रा शुरू हुई ! मुझे खिड़की वाली सीट मिली थी ! प्राकृतिक दृश्य , पर्वत शृंखला और टेढ़े -मेढ़े रास्ते को निहारता चल गया ! पहले नूरपुर में बस रुकी और बहुत से छोटे -छोटे स्थानों पर भी रुकी ! फिर शाहपुर और अंत में योल कैम्प !
अद्भुत नज़ारा चारों तरफ पर्वत ही पर्वत ,जंगल ही जंगल ,संकीर्ण रास्ते हिमालय के पर्वतों में बसा योल कैम्प की मनोरम छटा मन को मोह गयी ! सीढ़ी नुमा विभिन्य सैनिक यूनिट दिखलाई दे रहे थे ! ऊँचे पर्वतों पर बर्फ दिखाई दे रही थी ! समुद्रतल से इसकी ऊँचाई 1,221 m (4,006 ft) है ! इस शहर का नाम YOL (Young Officers Living) से लिया गया है, जो 1849 के आसपास ब्रिटिश भारतीय सेना द्वारा स्थापित एक छोटा सा शहर है। योल कैंट । (छावनी) का निर्माण 1942 में किया गया था। पहले इसे “मझैथा” गांव के रूप में जाना जाता था।
बस ने मुझे मैन रोड पर उतार दिया था ! ऊपर खड़ी पहाड़ी 2 किलोमीटर पर हमारा अस्पताल था ! बगल चेकपोस्ट से फोन किया और कुछ ही क्षणों में हमारी गाड़ी आ गयी और अपने सैनिक अस्पताल में मुझे ले गयी ! वहाँ लोगों ने मेरा स्वागत किया ! सब के साथ घुल -मिल गया ! चमुड़ा देवी का मंदिर अद्भुत लगा ! धर्मशाला ,ब्रिगैड बाज़ार और दाह पिक्चर हॉल की यादें अभी तक ताजी है ! वैसे बहुत दिन हो गए पर उस सुनहरे क्षणों को अभी तक अपने मनोमस्तिष्क में कैद कर के रखा है !
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डॉ लक्ष्मण झा”परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
डॉक्टर’स लेन
दुमका
झारखण्ड
भारत
28.05.2022