पहली दफ़ा
मुलाक़ात जब तुझसे पहली बार हुई,
फिर मिलते रहने की आरज़ू बार बार हुई,
सोचा था एक भोली सूरत की श्रृंगार में लतपथ परी सी होगी कोई,
पर देखने के बाद तुझे, मानो लगा की भेंट मुझे कोई चन्द्र की प्रतीवेशी हुई ।।
इरादा ना था तेरा होने का, पर इरादे का इरादा बदल गया तेरे सामने आते ही,
दिल बार बार तुझे पुकारने लगा, तेरे जाते ही,
लगन लग गई तुझसे, कर गई तेरी अखियां कमाल,
फस गया मैं, वो जो बिछा दिया तूने अपने इश्क़ की जाल,
जब जब देखा तूने मेरी ओर, मानो चला गया मैं तुझ में समाते ही ।।
वो तेरी मृग सी नैना, जान ना सका मैं तारीफ में उसके क्या क्या कहना
बिखरी सी वो जुल्फें तेरी, जिसकी झटक, कर गई तुझको मेरी,
लबों पे तेरी वो मुस्कान, जैसे कुरेद रहा हो मुझे करने को तेरे शहद के रसपान,
तेरे अतरंगी चाहत को सतरंगी इश्क़ में भिगोने की ख्वाहिश तले मशगूल हो गया मैं,
ना जाने उस ख्वाहिश को कब एक हकीकत में तब्दील कर गया मैं ।।
-निखिल मिश्रा