//… पहला प्रेम – पत्र …//
//… पहला प्रेम-पत्र …//
—- —- —- —-
इस पन्ने पर ,
समेटता हुआ ,
कुछ शब्दों में ,
अपनी भावनाओं को ,
लिख रहा हूं तुमको…!
सामने आकर ,
नहीं कह सकता ,
कहना चाह कर भी तुमसे ,
डर लगता है मुझको…!
समर्पित हूं तुम्हारे लिए ,
पर विरक्त हूं ,
तुम बिन / तुम्हारे लिए
और स्वयं अपने लिए…!
कर लिया है आत्मसात ,
मैंने तुम्हें इतना कि ,
क्यों / किसलिए…खुद से
आत्मघात करने लगा हूं…?
असीम , अदृश्य दर्द लेकर ,
कल्पनाओं के अथाह सागरों में…
उतर कर तैरना चाहता हूं ,
तुम्हारी स्मृतियों की लहरों में…!
तुम अनंत आकाश को ,
अपनी आगोश में लेकर
लेना चाहता हूं तुम्हारे ,
चांद से चेहरे का चुंबन…
मगर रुक जाता हूं
देखकर तुम्हारा सूनापन…!
शायद / इसलिए
मेरा यह मन ,
नहीं कर पा रहा था व्यक्त
अपनी भावनाओं को ,
तुमसे / तुम्हारे प्रति
और स्वयं अपने प्रति
इन्हीं कुछ शब्दों में ,
कर दिया है मैंने अपने
प्रेम की अभिव्यक्ति …
तुमसे / तुम्हारे प्रति
और स्वयं अपने प्रति…!
मेरे पत्र का जवाब ,
तुम देना चाहो ना चाहो
मगर एक बार सोच लेना ,
दुनिया में मेरा कोई नहीं ,
तुम ही मेरा सब कुछ हो…!
हर घड़ी , हर पल
रहूंगा तुम्हारे सामने…
इस पत्र के सवाल के
जवाब के इंतजार में…!
चिन्ता नेताम ” मन ”
डोंगरगांव (छत्तीसगढ़)