“पहचान”
“पहचान”
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शुरू होती जब कभी कोई नई कहानी ,
सभी पात्रों को पड़ती है पहचान बतानी ।
किरदार तो निभाते सभी उस रंगमंच में…
पर अहम वो हैं जिसने पहचान बना ली ।।
“पहचान” शब्द का अर्थ बड़ा व्यापक ,
शब्द सीमाओं तक ये सीमित ना होती।
वो मानव-काया किसी काम का नहीं ,
आत्मा जिस तन का साथ छोड़ देती ।।
बड़ी मशक्कत से कोई पहचान बनाता ,
जो मनुज को इक ख़ास मुकाम दिलाता ।
पहचान जब ना रह जाए किसी जन का ,
तो ज़िंदगी उसका यूॅं गुज़र जाए व्यर्थ का ।।
दो वक्त की रोटी तो कोई भी कमा लेता ,
उसी में परिवार का गुजर-बसर कर लेता ।
पर समाज में जिसकी पहचान ना होती ,
वो इंसान सदैव घूंट-घूंट कर मरता रहता ।।
सत्कर्म से ही किसी की पहचान बन सकती ,
हासिल करने में जिसे लंबी वक्त लग सकती ।
पर ज़िंदगी जीने के लिए पहचान है जरूरी ,
ख़ास पहचान से ये जीवन सुरभित हो उठती ।।
इस विशाल सी दुनिया में कितने हैं हमारे जैसे ,
बिन पहचान के कोई हमें ख़ास तवज्जो न देगा।
ख़ास पहचान से खुद को हम जब सिद्ध कर देंगे ,
तो आमंत्रित कर हमें हर कोई ख़ास स्थान देगा ।।
पहचान के बिना जीवन की नैया ही नहीं चलेगी ,
जैसे पतवार बिना नैया को साहिल नहीं मिलेगी ।
इंसान को यश, वैभव व ख्याति प्राप्त करनी हो ,
तो उसे अपनी इक ख़ास पहचान बनानी ही होगी ।।
पहचान जीवन भर किसी का साथ नहीं छोड़ती ,
जन्म से मृत्यु तक अनवरत ही वो पीछा करती ।
अलविदा कह जाते जब कोई इस दुनिया को….
पर पहचान उनकी इस दुनिया में ही रह जाती ।।
स्वरचित एवं मौलिक ।
सर्वाधिकार सुरक्षित ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 30 दिसंबर, 2021.
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