पहचान ही क्या
जो पहले ही कदमो में लडखडा जाये
वो चाल ही क्या ?
जो तेज भी दौडे और मंजिल तक न पहुँचे
वो रफ्तार ही क्या ?
जो चहरा देखकर मुँह फेर ले
वो प्यार ही क्या ?
एक टक देखते रहे और कुछ ना देखे
उन आँखों का ऐतबार ही क्या ?
सबको अच्छे से जानते हो खुद को ना पहचाने
वो पहचान ही क्या ?
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* Swami Ganganiya *