पहचान में नही आता
यहाँ कोई भी शख़्स अब,
पहचान में नही आता,
मर गई हैं सब की संवेदनाएँ,
किसी दूसरे का दर्द तड़पने,
के लिए मजबूर नही है कर पाता
यहाँ कोई भी शख़्स अब,
पहचान में नही आता,
निगाहों ने खो दी है,
अच्छे बुरे की पहचान,
अपनी ग़लतियों पर डाल कर पर्दा,
अब कोई नही है पछताता,
यहाँ कोई भी शख़्स अब,
पहचान में नही आता,
उदारता खो गई है कहीं,
धोखे का बाज़ार है लगाता,
पीठ में ख़ंजर उतार कर भी,
कातिल कोई नही कहलाता,
यहाँ कोई भी शख़्स अब,
पहचान में नही आता,
जीभ ने खो दिया पवित्र स्वाद,
बेईमानी के विषैले स्वाद को
अमृत मान कर हर कोई है अपनाता,
यहाँ कोई भी शख़्स अब,
पहचान में नही आता,
किससे शिकायत करें अब,
रिश्ते-नाते हुए मतलबी,
अपनों के होते हुए भी,
ख़ुद को गैर है पाता,
यहाँ कोई भी शख़्स अब,
पहचान में नही आता…..