*पहचान* – अहोभाग्य
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पहचान
शीर्षक – अहोभाग्य
विधा – अतुकांत काव्य
लेखक – डॉ अरुण कुमार शास्त्री
पहचान के लिए आज जूझ रहा है साहित्यकार ।
कर रहा कविता लिख रहा लेख हर समूह – हर बार ।
एक पत्र सम्मान का प्रशस्ति की खातिर मिला ।
नाम के आगे सम्माननीय समूह में प्रशासक ने लिखा ।
हो प्रोत्साहित उनके इस उद्बोधन से कवि ने धन्य कहा ।
मान कर पहचान अपनी वो इसे कितना गर्वित हो रहा ।
सामाजिक पटलों पर ऐसे रोज़ सम्मेलन हो रहे ।
पहचान बांटते पत्रों के माध्यम से व्यक्तिगत आस्था खो रहे ।
दूर –दूर से ही सही मेरी भी पहचान बनी ।
सम्पूर्ण भारत अब बना मेरी अपनी है स्थली ।
सामने पड़ जाये यदि कोई न देगा ध्यान ।
बस इतनी पहचान है अरे , सुनिए तो श्रीमान ।
निशुल्क सम्मेलन हुआ कहलाया अंतर्राष्ट्रीय ।
विदेश से सहभागी एक नहीं शामिल थे सिर्फ भारतीय ।
मन मसोस कर रह गए कविता पढ़ने की जब आई बारी ।
मंच पर बैठे हुए थे सिर्फ प्रबंधन के अधिकारी ।
पहचान के लिए आज जूझ रहा है साहित्यकार ।
कर रहा कविता लिख रहा लेख हर समूह – हर बार ।
एक पत्र सम्मान का प्रशस्ति की खातिर मिला ।
नाम के आगे सम्माननीय समूह में प्रशासक ने लिखा ।
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