पश्चाताप का खजाना
खजाना अक्सर धन का होता है लेकिन मुझे नसीब हुआ -पश्चाताप का खजाना।छिपा खजाना भला किसको अच्छा नहीं लगता।मैं अपने घर खर्च में से कुछ पैसे बचत के तौर पर छुपाकर रख देती थी।ताकि भविष्य में जरूरत के समय काम आ सकें।
अतः मैंने बचत के कुछ पैसे एक किताब में छुपाकर रख दिये। मैं ये पैसे रखकर भूल गई।संयोग से देश में पुरानी मुद्रा का चलन बन्द करने की घोषणा हो गई।लेकिन मैं उस रखे पैसे को भूल गई थी। अचानक मुझे याद आया कि मैंने कुछ पैसे रखे हुए हैं लेकिन जब तक नोट बदलने की समय सीमा निकल चुकी थी।
छिपा खजाना पाकर मेरे मुख से निकला-हाय! ये क्या अनर्थ हो गया है।
पश्चाताप में हाथ मलते हुई मैंने कहा-काश ये छिपा खजाना समय रहते पता चल जाता तो मुझे कितनी ख़ुशी होती।
परिचय:-
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
सम्पर्क 9050978504
प्रमाणित करता हूँ कि. यह मेरी स्व रचित रचना है।।