पश्चाताप ( कविता)
पश्चाताप (कविता)
एक दिन सोचा मैनेें,
एकांत में बैठकर।
क्या खोया जीवन में,
और क्या पाया अब तक।
मूल्यांकन ना कर सके,
न किया विचार अब तकें।
एक ख़ुशी के इंतज़ार में,
सारी उम्र गुज़र गयीें।
जिंदगी रेत की तरह,
हाथ से फिसल गयी।
एक स्वप्न नगरी में घूमते रहे,
किसी की हाथों में हाथ डालकर।
मगर जब आँख खुली तो,
दिल बहुत रोया यह जानकर।
कैसी ख़ुशी ! कैसा साथी !,
यह तो मात्र मेरा भ्रम था।
भुला रखा था खुद को मैने,
यह मेरा कैसा पागलपन था।
जीवन के अंतिम पड़ाव में जब,
रह गए है बस चंद श्वास।
ऐसे समय में जो कुछ शेष है,
और मेरा मात्र पश्चाताप ।