पशु हत्या
कुण्डलिया
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जीने को विचलित रहा, मानव घर में बंद ।
लेकिन पशु-पक्षी सभी, फिरते थे स्वच्छंद।।
फिरते थे स्वच्छंद, सुखी हो विचरण करते ।
भूले अत्याचार, चैन की साँसें भरते।।
कहे ‘नवल’ कर पाप, फुलाते हो तुम सीने ।
पशु हत्या है पाप, उन्हें भी तो दो जीने ।।
– नवीन जोशी ‘नवल’