पवन संदेश
पवन संदेश
सहलाये पवन, इठलाये पवन
पर मन को क्यूँ नहीं भाये पवन..
कोमलता का एहसास लिए
मन को क्यों चुभ जाए पवन..
भरी दोपहरी छांव तले
बैठा है पथिक थका अँचवन..
तरुवर के पत्ते जैसे कहते हो
क्यों दग्ध हुआ रे तेरा तन मन..
सहलाये पवन, इठलाये पवन..
संग लेकर चलता वो सूखे पत्ते,
सरसराता चलता वन उपवन..
कोंपल किसलय पल्लव नूतन
कुम्हलातें हैं जब बहता न पवन..
सहलाये पवन, इठलाये पवन..
पवन कहता है बस इतना मन को
मेरे जैसा न हो तेरा चितवन..
उठ जाता है जब तूफ़ाँ मुझमें
मैं बन जाता हूँ सबका दुश्मन..
सहलाये पवन, इठलाये पवन..
मौलिक और स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – २९/११/२०२४ ,
मार्गशीर्ष , कृष्ण पक्ष ,त्रयोदशी ,शुक्रवार
विक्रम संवत २०८१
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