पवन ! कहो प्रिय से संदेश…
पवन, कहो प्रिय से संदेश….
पवन, कहो प्रिय से संदेश,
आयी दिवाली अपने देश,
कितनी अवधि और है शेष,
कब आयेंगे तज परदेश,
माने निठुर न मेरी बात,
देना वीर तुम्हीं आदेश !
कौन गुने विरहन की पीर,
किसे दिखाए वह दिल चीर,
छलछल बहे नयन से नीर,
उस पर मदन चलाये तीर,
सखे, तुम्हीं बताओ आखिर,
कब तक दबा रहे आवेश !
शरद-चंद्र बिगसा गगन में,
झुलसे बाला प्रेम-अगन में,
खैर-खबर न जग की कोई,
है मगन बस अपनी लगन में,
हर कंपन हर आहट पर,
नयन चकित तकते प्राणेश !
खिली हरियाली दिग्दिगंत,
सखियाँ मुदित संग निज कंत,
जान निकट विरहन का अंत,
छोड़ काम सब आये तुरंत,
तभी उतरेगा जोगन वेश,
तभी सँवरेंगे लम्बे केश !
पवन, कहो प्रिय से संदेश…
– © सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
“काव्य चिंतन” से