पवनारोहिणी
देख पवन वेग के घोड़े को,,
अंग्रेज वहाँ से दौड़े थे।
कुछ गिरे धड़ाम से धरती पर,,
कुछ बचे बहुत ही थोड़े थे।।
डर-डर-डर थे वो जाप रहे,,
कर थर्रा-कर थे काँप रहे।
जो रानी आगे आतीं तो,,
थे मृत्यु को वे भाँप रहे।।
महारानी के तलवार-तेज से,,
अंग्रेज हो चुके अंधे थे।
जो पवन-पैर के नीचे आये,,
सो टूटे उनके कंधे थे।।
धनुर्-ध्वनि को सुनकर ही,,
अंग्रेज सभी निश्चेत हुए।
जो आये लड़ने रानी से,,
सो श्वेतों के वस्त्र भी श्वेत हुए।।
जो भाला फेंका रानी ने,,
सो ढे़रों अंग्रेज थे ढे़र हुए।
जो देखी रण-नीति रानी की,,
तो झाँसी के सैनिक भी शेर हुए।।
महारानी के महा-शौर्य को,,
‘भविष्य-वंदन’ बारम्बार है।
मणिकर्णिका की वीरता की,,
गाथा अपरम्पार है।।
-भविष्य त्रिपाठी