पल
कभी इंतजार के
एक एक पल
बड़े भारी लगते थे
काटते नही कटते थे
आज जब तुम्हारा
साथ छूट चला है
वही जीने का
एकमात्र सहारा बना है।
यूं नदी के किनारे
रेत पर साथ बैठे
लहरों की अटखेलियां
घंटों निहारते
हम थकते नही थे
आज वही लहरे
उदास हमे बुलाती है
तुम्हारा हाल
हमसे पूछती है
मेरे पास चलकर आती है
तुम्हे मेरे पास न
पाकर बेचैन सी
वापस लौट जाती है।
कदम्ब के वृक्ष
जिसके नीचे हम
तुम्हारे गोद मे सर
रख कर लेटते थे
तुम्हारे गीत सुनते थे
उन वृक्षो पर विहंग
के समूह के कलरव
हमारा समर्थन कर
हमारे मौन प्यार के
वाचाल गवाह
बने थे
अफसोस अब वे भी
वहाँ नही रह रहे थे।
अब तो उन हवाओं
ने भी अपना
रुख मोड़ लिया था
जो कभी तेरी गोद मे
लेटे,उनींदी, जम्हाई
लेते मेरे मुख मंडल को
तुम्हारे आँचल से
ढक देते थे
मेरी अबाध नींद में
तुम्हारे सहायक होते थे।
वे जो कभी
तरंगित होते थे
तेरी रांगो से
मुझे मदहोश कर
तुम्हारे रस का पान
करते थे
उन्होंने भी अपना
रास्ता बदल लिया है।
आज मुझे पता चला
तुम सिर्फ मेरी ही नही
कितनो का जीने
का सहारा थी
भटक रहे थे जो
इन मौजों पर
उनके लिए किनारा थी
प्यासे मरुभूमि में
भटकते हुओं के लिए
एक मीठे जल का
स्रोत थी
बेशक निर्मेष तुम्हीं से मेरी
जिंदगी ओत प्रोत थी।
निर्मेष