पल में ढलता पल
पल में ढलता पल
मात्र कुछ ही पलों का अंतर
देखो कितना हो जाता है भावन्तर
कल्पना करो साल का अंतिम दिन
31 दिसंबर जैसे शरीर हो जीवन बिन
निढाल, बेजान थका-थका सा
घड़ी का आंकड़ा जैसे रुका सा
लेखा साल भर की कमियों का सालम
चारों तरफ माफी मांगता सा आलम
दूसरा ही पल 1 जनवरी नए साल का
उत्साह से भरपूर जज्बातों के उछाल का
सब कुछ भूल कर उत्साहित होने का दिन
साल भर के लिए नए सपने संजोने का दिन
संकल्प फिर नए बन कर जहन में आते हैं
जो गत वर्ष में पूरे होने से रह जाते हैं