“पलाश”
मैं निहार रही हूं तुम्हें,
मुग्ध हूं, तुम्हारे विराट सौन्दर्य पर,
हे पलाश! क्या तुम से सुंदर कोई हो सकता है?
तुम्हारे पत्ते हवा में झूम रहे हैं,
मानों खुशी से नाच रहे हैं।
तुम्हारी जड़ों की ताकत,
अनमोल है इस धरा पर,
हे पलाश! क्या तुमसे ताकतवर कोई हो सकता है
बिन सुगंध ही जीवन को महका रहे है
मानों सबको उड़ना सीखा रहे है।
उलझनें ज़िन्दगी की है कितनी,
ठहर कर पल भर देख लूं तुमको
हे पलाश! क्या जी भर कोई देख सकता है
जड़ से पुष्प तक समर्पित हो रहे हैं
मानों स्वयं में समाहित हो रहे हैं।
© डा० निधि श्रीवास्तव “सरोद”…