पलायन का दर्द
लौट कर चले आये
वहाँ रह कर भी क्या करते
कोई अपना नही हो जहाँ
वहाँ मर कर भी क्या करते
लोग दूर से पूछते थे, कैसे हो भाई
थक गए अपना हाल समझाते, क्या करते
रास्ता,मंजिल तरीका सब पता था मगर
पता नही था दूरी इतनी हो जायेगी, क्या करते
सिवा हमारे दुनिया ही घर मे बैठी थी
दुखी थे सभी, हम दुख के अचार का क्या करते
जिंदगी छोटी सी है, इसलिए छोटे खाब देखे थे
पर रात इतनी लंबी हो गई, भला क्या करते
मुँह देखने को तरस गए अपनो का
मौत की सवारी भी मिली चढ़ लिए, क्या करते
माँ के आंसू, बहन की राखी, बीवी की चूड़ियां
कितना कुछ छुप गया आंसुओं में, क्या करते
सोचते थे सुबह आएगी कोई, पर
दिलासे भी दिल से कहाँ लगते थे, क्या करते
लौट कर चले आये भला क्या करते
जो मजदूर इस कोरोना काल मे अपने घर के लिए निकले मगर कभी पहुंच नही पाए उनकी याद में मेरी श्रद्धांजलि