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3 Sep 2024 · 1 min read

पलकों पे जो ठहरे थे

पलकों पे जो ठहरे थे
वो आंसूं मचल गये,
तेरी भी कुछ ख़ता थी
कुछ हम भी बदल गये।
डाॅ फ़ौज़िया नसीम शाद

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