पर हिम्मत कभी हारी नही
——-पर हिम्मत कभी हारी नहीं——
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मैं थक चुका हूं
टूट चुका हूं
पर हिम्मत कभी हारी नहीं
है कौन जगत में किसका यह सब एक धोखा है
कर्म पथ पर पर जो चला यही एक अनोखा है
मैं थक चुका हूं
टूट चुका हूं
पर हिम्मत नहीं हारी कभी
रोशनी का एक समुद्र , हर तरफ दिखाई देता है
हार जीत के इस सागर में , उम्मीद दिखाई देती है
कर दो समर्पण बस ही , फिर विश्वास दिखाई देता है
मतलब के संसार में , बस हित दिखाई नहीं देता है
मैं थक चुका हूं
टूट चुका हूं
पर हिम्मत तभी हारी नहीं
खुले गगन में कर लो विचरण, उम्मीद यही अब जाग रही
मैं मुक्त गगन का पंछी हूं , अंतर आत्मा अब कह रही
ओ सागर से टकराने वाले, हिम्मत कभी हारना नहीं
ये जीवन क्षण भंगुर का, विश्वास कभी खोना नहीं
मैं थक चुका हूं
टूट चुका हूं
पर हिम्मत कभी हारी नहीं
कौन है इस जगत में
किसका
यह सब एक धोखा है
ज्ञान का हो भाव कितना,भंडार काम नहीं आएगा
जब तक तेरे पद का पद पास नहीं कर पाएगा
पद ही है प्रतिष्ठा का पद, यही नजर सब आएगा
ओ खुमारी ओ मतवाली के मतलब फिर जान जाएगा
कितना भी थक जाना
लेकिन
कितना भी टूट जाना
लेकिन
हिम्मत जो कभी नहीं हारेगा
कर्म पथ पर चल चला
रस्ता फिर बन जाएगा
रस्ता फिर बन जाएगा
मैं थक चुका हूं
टूट चुका हूं
पर हिम्मत कभी हारी नहीं
पर हिम्मत कभी हारी नहीं
व्याधि ग्रसित हो गया पर
विश्वास मैंने खोया नहीं
विश्वास मैंने खोया नहीं
मैं टूट चुका हूं
थक चुका हूं
पर हिम्मत कभी हार नहीं
पर हिम्मत कभी हारी नहीं
सद्कवि– प्रेमदास वसु सुरेखा ADV