पर शायद
मेरी आँखों से आँसू तो छलके थे
तुम्हारी उस बात पर
कहने के अंदाज़ पर
पर शायद …..
तुमने देखा ही नहीं….
इशारों में कही भी थी दिल की बात
सुनाई थी दिल की फरियाद
बयां किये थे जज़्बात
पर शायद
तुमने समझा ही नहीं….
खड़ी रही थी तुम्हारे जाने के बाद
घण्टों पत्थर बनकर
बेबस और लाचार
पर शायद
मुड़कर तुमने देखा ही नही….
तुम साथ तो चले कुछ दूर साथी बनकर
सिर्फ अपनी खुशी के लिए
हाथ में हाथ पकड़कर
पर शायद
इश्क़ तुम्हे हुआ ही नहीं….
अब आये हो तुम दिल की फरियाद सुनाने
इश्क़ की किताब लिए
उन दिनों का हिसाब लेकर
पर शायद
अब मेरे पास देने को कुछ बचा ही नहीं ।।