#पर्व_का_संदेश-
#कविता-
■ विजया दशमी का संदेश
【प्रणय प्रभात】
“आत्मसात राघव करने थे,
ये सुकृत्य तो करा नहीं।
पुतले बहुत जलाए हमने,
असली रावण मरा नहीं।।
बाहर ढूंढ रहे दशकंधर,
अपने भीतर झांकें हम।
अंदर से उपजा प्रकाश तो,
बाहर नहीं बचेगा तम।।
रावण अपना अहंकार है,
मेघनाद मायावी मन।
अन्तःकरण कुंभकरणी है,
अहिरावण सा छलिया तन।।
बता रही है विजया-दशमी,
निज विकार का शमन करें।
मिल कर रघुराई के पथ पर,
आओ, हम अनुगमन करें।।”
शौर्य-पर्व विजया-दशमी (दशहरे) की अग्रिम बधाई व अशेष-विशेष शुभकामनाओं सहित। जय सियाराम, जय हनुमान।।
■प्रणय प्रभात■
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)