पर्वत पिघले, हिलती धरती
पर्वत पिघले हिलती धरती
पर्वत पिघले हिलती धरती
अब तो कुछ समझो यारों
कहीं समंदर दोल रहा है
हमसे कुछ – कुछ बोल रहा है
अब तो कुछ समझो यारों
लगता टूटा – टूटा सा मानव
अब तो कुछ समझो यारों
धू – धू करती यह धरती
मरते प्राणी औए ये पंक्षी
पीने को पानी न मिलता
अब तो कुछ समझो यारों
मातृ प्रेम से किया किनारा
पल – पल बिकता है सारा
हाय – हाय कर देश पुकारे
अब तो कुछ समझो यारों
पल – पल जीता , पल – पल मरता
पल – पल गिरता , पल- पल उठता
उठ कर फिर गिरता मानव
अब तो कुछ समझो यारों
बिखरा – बिखरा हर – क्षण जीवन
जल्दी – जल्दी सरके जीवन
नव – शिशु कुछ कहता हमसे
अब तो कुछ समझो यारों
गली – गली अब काम पिपासा
मंदिरों से छूटा नाता
बियर बार सब डोल रहे हैं
अब तो कुछ समझो यारों