लिप्सा-स्वारथ-द्वेष में, गिरे कहाँ तक लोग !
औरतें नदी की तरह होतीं हैं। दो किनारों के बीच बहतीं हुईं। कि
*मनः संवाद----*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
पहले आसमाॅं में उड़ता था...
इंसानों के अंदर हर पल प्रतिस्पर्धा,स्वार्थ,लालच,वासना,धन,लोभ
काल भैरव की उत्पत्ति के पीछे एक पौराणिक कथा भी मिलती है. कहा
सारा दिन गुजर जाता है खुद को समेटने में,
*जो अपना छोड़कर सब-कुछ, चली ससुराल जाती हैं (हिंदी गजल/गीतिका)*
//••• क़ैद में ज़िन्दगी •••//
धार्मिक इतने बनो की तुम किसी का बुरा न कर सको
हम भी तो चाहते हैं, तुम्हें देखना खुश
जब हर एक दिन को शुभ समझोगे
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
दीपावली
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
मुनाफे में भी घाटा क्यों करें हम।
काली हवा ( ये दिल्ली है मेरे यार...)