पर्यावरण संरक्षण (व्यंग्य)
मंत्री जी की दिख पड़े,पेड़ लगाते चित्र।
समझो बस पर्यावरण,संरक्षित ही मित्र।१।
एक दिवस का जागरण,धरती का उद्धार।
अन्य दिवस में काट कर,करें वृक्ष-उपकार।।
उतरे महँगे कार से,देते सबको ज्ञान,
अभिवादन उनका करो,वे हैं पुण्य-चरित्र।।
समझो बस पर्यावरण,संरक्षित ही मित्र।२।
विश्व-प्रदूषण का नहीं,सचमुच कुछ भी दोष।
व्यर्थ उस असहाय को,सभी रहें हैं कोस।।
विकसित देशों में सदा,होता दूषण अल्प,
वे तो करते हैं सभी,पर्यावरण पवित्र।।
समझो बस पर्यावरण,संरक्षित ही मित्र।३।
मिलकर हम सब साथ में,भई करें क्यों काम?
पर्यावरण हम लें बचा,तुम ले जाओ नाम!!
विश्व- सभाओं में उठे, संरक्षण – सौगंध,
अच्छी आई देश के,प्रतिनिधियों के चित्र।।
समझो बस पर्यावरण,संरक्षित ही मित्र।४।
नदियों में तिरते दिखे,अद्भुत फेन सफ़ेद।
नेताजी को छोड़कर,कौन जानता भेद!!
नेता-मंत्री से बड़ा,जल का रक्षक कौन,
तब तो नदियाँ खिंचती,उनके फेनिल-चित्र।
समझो बस पर्यावरण,संरक्षित ही मित्र।५।
मैंने प्रकृति के लिए,बनवाया है हार।
गमलों में दी है लगा,जड़ी-बूटियाँ चार।।
तालाब,कुएँ,बावड़ी,सूख रहे सब ओर,
अबकी बढ़ती जा रही,गर्मी बड़ी विचित्र।।
समझो अब पर्यावरण,संरक्षित ही मित्र।६।
©ऋतुपर्ण