परीक्षा
परीक्षा
जिसका हमें इंतजार था आज दरवाजे पे आइ
निकट भविष्य के सभी सूचना संप्रेषित करवाई
बोली केवल बाते ही करोगे या करोगे कारवाइ
नही तो न वफा मिलेगी मिलेगी बस रूसवाई
अंचभित सा हुआ मन हृदय का तार हुआ झंकृत
आज इसके भी शब्द कैसे हुए इतने अलंकृत
मशरूफ थे हम जिसके मकबुलियत पाने के लिए
मगरूर हो चली वह मारूफियत पाने के लिए
मशगूल तो हम पहले से थे आजमाइश के लिए
आरजू भी थी निज हाथो से आराइश के लिए
एतबार था हमें उसकी स्वीकृति पाने के लिए
इत्तिफ़ाक़ तो देखिए खुद आ गई बताने के लिए
कायदे से उसका सब कायल हुआ करते है
ख्वाइश की अग्नि में हवानाहुति दिया करते है
गोया नही करते बातों का न करते गुफ्तुगु
लगाते हसरत में आग न करते कोई जुस्तजू
असर उसका अब दिखने लगी भय खाता हूं
बिना अस्बाब को जाने अहजान सुनाता हूं
खैर इसको अब रोकना किसी के हाथ कहां
यह पर की ही इच्छा है तो अपना जज्बात कहां✨