परीक्षा की घड़ी है
ये परीक्षा देने की बारी है,
या मौत से दो हाथ करने की तैयारी है।
पाँव पसार रहा रोग इस क़दर,
समाया है लोगों में खौफ़ का घर।
है ज़िन्दगी से बढ़कर कुछ नहीं,
हैं कुछ लोग इसमें भी ख़ुश नहीं।
मनमानी करने की ठानी है,
ग़लती भी न पहचानी है।
जीवन से क्यों करना खिलवाड़,
कर लें निर्णय आर या पार।
विरोधियों का स्वर तेज़ है,
फिर भी ना कोई परहेज़ है।
अंजाम नहीं अच्छा होगा,
गर निर्णय ना सच्चा होगा।
लोग बिलख रहें,बेचैन हैं,
ऐसे में ये क्या रैन है।
गर कुछ हो चला किसी को,
फिर माफ़ ना कर पाएँगे।
परीक्षा की बात क्या आई है,
जब जीवन पर बन आई है।
समर्थन न मिल पाएगा,
बात हाथ से निकल जाएगा।
अब भी है वक़्त,
है कुछ बिगड़ा नहीं।
अब भी न संभले तो,
बिगड़ सकता बहुत कुछ है।
——सोनी सिंह
बोकारो(झारखंड)