परीक्षा का भय
मुझे याद आते हैं
अपने बचपन के दिन
जब परीक्षा देने घर से
निकला करते थे
मां किया करती थी बहुत से शगुन
कभी दही पीने को कहती थी
कभी शक्कर खाने को कहती थी
और न जाने क्या-क्या
ताकि अच्छी हो परीक्षा
और
अच्छे आएं अंक
मन के अंतस में भी कहीं
होता था एक अंजाना-सा भय
न जाने कैसी होगी परीक्षा
कैसा होगा प्रश्न पत्र
कैसे आएंगे अंक ,
यूं लगता था परीक्षा ही है
आपके समग्र जीवन का
एकमात्र मानक
आपकी योग्यता का मापदंड,
परीक्षा से कई दिन पहले से
हो जाती थी तैयारियां शुरू
और फिर सारी दुनिया से अनभिज्ञ
हम कस लिया करते थे अपनी कमर
संभावित किसी युद्ध के लिए
अपने तरकश को अचूक बाणों
से भर लेना बहुत जरूरी हो जाता था
युद्ध में विजय पाना
आवश्यक हो जाता था
आत्म सम्मान सब दांव पर लग जाता था,
परंतु , परंतु आज मौसम बदल गया है
बदल गया है समय
दौर बदल गया है,
परीक्षा पर चर्चा का दौर है आज
परीक्षा उत्सव का दौर है आज
परीक्षा समारोह का बन चुका है पर्याय ,
परीक्षाओं के इतिहास में
जुड़ा है एक नया अध्याय ,
अब केवल परीक्षा ही नहीं मात्र
जीवन का मूल्यांकन आधार
अब केवल परीक्षा ही नहीं
जीवन में सफलता का आधार ,
जीवन में सफल व्यक्तित्व का मापदंड
अब समझ गए हैं हम
जीवन को विभिन्न कौशलों से
सुंदर बना सकते हैं हम
जीवन में भरकर सात रंग
इंद्रधनुषी बना सकते हैं हम,
सच !! अब एक नया युग आया है,
परीक्षा का भय जिसने
कोसों दूर भगाया है
कोसों दूर भगाया है ll