दोहा पंचक. . . अर्थ
दोहा पंचक. . . अर्थ
वह पैसा किस काम का, हरण करे जो चैन ।
चिन्ताओं के जाल में, बीते सारी रैन ।।
पीछे धन के भागता, जीवन भर इंसान ।
अर्थ जाल के पाश में, हारे अपनी जान ।।
अर्थ पंक में रात दिन, उलझा है इंसान ।
इस लालच में भूलता, वह अपना ईमान ।।
माना जीवन चक्र में, अर्थ बढ़ाता शान ।
सिर चढ़ कर फिर बोलता, अर्थ लिप्त अभिमान ।।
व्यर्थ अर्थ की लालसा, व्यर्थ अर्थ अभिमान ।
क्या जाता कुछ साथ जब, होता है अवसान ।।
सुशील सरना / 19-12-24