परिस्थति के अनुकूल
अनमोल – सी चारु भव्य लोक में
सर्व ढ़लते परिस्थिति के अनुकूल
आस – पास परिवेश को अवलोक
परिस्थिति को आभास लगाते बुजुर्ग
हमे भी अपनी नूतन हयात में
परिस्थति का अवलोकन कर
उत्प्रेक्षा का पूर्वानुमान लगाना
धीमे – धीमे कर सीखना होगा
जिसने परिस्थति का कूत लगा
स्वंय को उसके अनुकूल बदला
वह आने वाली किसी उपपाद्य से
पर्याप्त तरह से कुशलक्षेम है।
खग , जगन्नु , कीट,
हो चाहे वह मनुष्य
पर सबको ढ़लना होता
परिस्थति के अनुकूल है,
कोई पूर्व तो कोई विलंब
पर ढ़लते समग्र अनुकूल
दिवा – रात्रि,सवेरा – सॉंझ
हो या मौसम परिवर्तन
सर्व परिस्थिति का बदलाव
असुरक्षित वही प्राणी रहता
जो न भाँपता परिस्थति को
सुरक्षित सदैव वही रहता
जो भाँपता परिस्थति को ।
जो हमें लगता निरर्थक है,
पर परिस्थति के अनुकूल,
वह भी उम्दा लगता हमें ,
खाने, पहनने, पीने, समय,
अन्य गतिविधियों पर हमारे ,
पड़ता परिस्थति का तासीर ,
परिस्थति के बदलाव का भी ,
प्रचंड असर पड़ता हम पर,
कभी – कभी तो हम इससे,
रोगग्रस्त भी हो जाते है,
परिस्थिति के अनुकुल हमें
धरा पर सदैव ढ़लना होगा।
परिस्थति के अनुकूल,प्रतिकूल रहने पर ,
दोनों का पृथक तासीर पड़ता हम पर ,
कोरोना का वही मृगया हुआ ,
जो परिस्थिति के प्रतिकूल गया ,
कोरोना से वही सुरक्षित रहा ,
जो परिस्थिति के अनुकूल रहा ,
धरा पर सुरक्षित रहना है तो ,
ऐसी महामारी से बचना है तो ,
परिस्थति के अनुकूल नसैनी होगा।
✍️✍️✍️उत्सव कुमार आर्या