परिसर
आज कहां यहां अच्छा परिवेश,
चारों ओर बस सिर्फ दुवेश ही दुवेश,
आज कहां अच्छा यहां परिवेश,
आज कहां पहले जैसी फिक्र,
सिर्फ दिखावे का होता जिक्र,
समय ही नही इतना किसी के पास,
पूछ ले किसी से उसके हाल चाल,
मिल जाएं कहीं अपने नजर फेर लेते,
कैसे छुपे बदल जाती कदम चाल,
लोग बदल गए तो परिवेश भी बदल गया,
पहले पूछते थे हालचाल आज ये ट्रेंड भी गया,
ना पूछने वाला सुखी न बताने वाला सुखी,
दिखावे के लिए हंसी बस अंदर से दोनो दुखी,
ईर्ष्या घर बना रही है सब ओर,
बस इसी ईर्ष्या का है अब जोर,
हमारे परिवेश को भी ईर्ष्या ही खा रहीं,
भेदभाव की गहरी खाई ये बढ़ा रहीं,
ईर्ष्या को न पालों दिलों में प्रेम बढ़े,
ईर्ष्या हो जाएं खत्म, स्वस्थ परिवेश हर ओर बढ़े,
शेर,, मत रखिए दिलो में भेद यारों,
किसको यहां सदियों रहना है,
बहाते चलों प्रेम की गंगा हर ओर,
अपना तो सभी से ये कहना है,
चले जाएंगे एक दिन सभी यहां से,
फिर कहीं दूर अपना आशियाना होगा,
पूछेंगे हाल चाल जब वो यहां के,
तब तो सच ही बताना होगा,
शेर, नफरत की खाई मत लगाइए,
बोईये न बैर के बीज यारों,
सत्य कभी छुपता नही, झुकता नही,
सत्य की आदत डालो यारों….