परिश्रम का महत्व (कहानी)
परिश्रम का महत्व 【कहानी】
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सुधीर को महीने की पहली तारीख का जब वेतन मिला तो उसकी आँखों में रुपए गिनते समय एक अद्भुत चमक आई लेकिन कुछ ही सेकंड में चेहरा बुझ गया । दरअसल महीने की आमदनी और खर्च में कोई ज्यादा अंतर नहीं रह गया था । हाथ में रुपए आते ही कुछ तो मकान का किराया ,कुछ बिजली के बिल में रुपए चले जाते थे । मासिक खर्च में दूध वाले को भी भुगतान शुरू की दो-तीन तारीखों में ही हो जाता था । आखिर के हफ्ता-दस दिन किस मुश्किल से कटते हैं यह सुधीर ही जानता था । हाथ में पकड़े हुए रुपयों को उसने गिना और अपनी जेब में रखकर वह अपनी बुरी अवस्था पर विचार कर रहा था ।
” मैं दिन भर फैक्ट्री में मेहनत करता हूँ । सुबह दस बजे से शाम छह बजे तक काम में जुटा रहता हूं । घर से नौ बजे चल देता हूं । जब अंधेरा हो जाता है तब जाकर घर पहुंचता हूं । इतना थक जाता हूँ कि रात को खाना खाया ,बिस्तर पर लेटा और नींद आ गई । बस यही दिनचर्या है । क्या इसी का नाम मनुष्य-जीवन है ? ”
वह विचारों की श्रंखला में निमग्न ही था कि फैक्ट्री के मालिक सेठ जी की कार आकर फैक्ट्री के प्रवेश द्वार पर रुकी। सेठ जी तेजी से कार से निकलकर अंदर चले गए। सुधीर के मन में सेठ जी को देख कर ईर्ष्या जाग उठी । सोचने लगा ,यह तो बड़े मजे से रहते होंगे ! इनके पास तो अच्छा-खासा धन है । रुपयों को जेब में रखे हुए इन्हीं विचारों में डूबता-उतराता हुआ बाहर निकला तो सेठ जी की कार के ड्राइवर से उसकी आँखें चार हो गईं। सोचा ,थोड़ी देर ड्राइवर से बात करता हुआ फिर घर को जाऊँ । बातचीत में तो सुधीर निपुण ही था। दो-चार मिनट में ही सेठ जी के ड्राइवर से उसकी पटरी बैठ गई । बातों-बातों में सुधीर को पता चला कि सेठ जी तो चौबीस घंटे काम में जुटे रहते हैं । न दिन का चैन , न रात की नींद । कभी सुबह छह बजे काम के सिलसिले में फैक्ट्री की ओर भागते हैं तो कभी रात के बारह बजे मीटिंग से लौटते हैं। ड्राइवर से यह सब सुनकर सुधीर को अपनी स्थिति कुछ बेहतर तो लगी मगर फिर भी एक कुंठा मन में पलती रही ।
बस पकड़ी और घर की तरफ चल दिया । रास्ते में भगवान से कामना करने लगा ” हे प्रभु ! इतनी परेशानियों से भरा हुआ जीवन तुमने मुझे क्यों दे दिया ? कुछ आराम करने का अवसर दे देते तो बड़ी कृपा होती ! ”
आश्चर्य देखिए ! उसी क्षण सुधीर की आँखों के सामने भगवान प्रकट हो गए। कहने लगे “तुम आराम चाहते हो ? काम से मुक्ति चाहते हो ? बैठे-बैठे तुम्हें सुख सुविधा के सारे सामान सुलभ हो जाएं ? शानदार घर ,कार ,सोने के लिए गुदगुदे गद्दे और एक तिजोरी जिसमें धन भरा हुआ हो ? ”
सुधीर ने खुशी से चिल्लाते हुए कहा ” हाँँ भगवन ! यही तो चाहता हूँ। आप मुझे दे दीजिए । सदैव आपके गुणगान गाउँगा।”
भगवान ने सुधीर से कहा ” ठीक है । आज से बिना काम किए सब प्रकार का आराम मैं तुम्हें प्रदान करता हूँ।”
बस फिर क्या था ! अगले ही क्षण सुधीर ने अपने आप को एक आलीशान कोठी के भीतर सुंदर सोफे पर बैठा हुआ पाया । देखा तो पास ही बढ़िया-सा पलंग पड़ा हुआ था । एक फ्रिज था । खोला तो उसमें तमाम तरह के सेब-संतरे आदि भरे हुए थे । वह अपने कक्ष की सजावट को देखकर मुग्ध था । तभी एक सुंदर सेविका ने आकर उससे कहा ” मालिक ! आपको कुछ चाहिए तो बताइए ? ”
सुधीर ने कहा “भूख लगी है । खाना चाहिए ?”
सेविका ने मीनू का कार्ड सुधीर के आगे रख दिया । सुधीर ने पूछा ” इनमें किसी वस्तु का मूल्य तो लिखा ही नहीं है ? ”
सेविका ने हँसकर कहा “स्वर्ग में हर वस्तु निःशुल्क होती है । यहाँ का सारा खर्च स्वर्ग की सरकार वहन करती है ।”
सुधीर को बहुत अच्छा लगा । सोचने लगा ” भगवान ने मेरे साथ कितनी बड़ी कृपा की है ! ”
जो – जो वस्तु सुधीर को पसंद थी ,सब उसने ऑर्डर देकर मँगा ली । भरपेट भोजन किया । शरीर हिलने-डुलने की स्थिति में भी नहीं रहा । तुरंत भोजन करते ही पलंग पर लेट गया । नींद आ गई । सोकर उठा तो कोठी के आगे बगीचे में टहलने लगा । कुछ देर बाद चाय-नाश्ते के लिए उसने सेविका को बुलाया । पुनः उसके हाथ में मीनू दिया गया और बताया गया कि आप जो चाहे वस्तु मंगा लीजिए । एक पैसे का भी भुगतान आपको नहीं करना है । स्वर्ग के नियमों के अनुसार सारा खर्च स्वर्ग-प्रशासन की ओर से वहन किया जाता है । अब तो सुधीर को लगा कि वास्तव में उसकी लॉटरी लग गई है ।
स्वर्ग में इसी प्रकार रहते हुए दस दिन हो गए । ग्यारहवें दिन सुधीर ने अपने शरीर में भारीपन महसूस किया । पेट भरा हुआ था। कुछ भी खाने की इच्छा नहीं हो रही थी । फिर भी उसने ढेर – सारा भोजन लालचवश मँगा लिया। सब कुछ मुफ्त जो था । पर उससे खाया नहीं गया । रात आते-आते उससे चला-फिरा भी नहीं जा रहा था । आखिर उसने रात्रि – भोजन लेने से मना कर दिया । फिर भी इच्छा बहुत थी। अतः मीनू को काफी देर तक देखता रहा । परंतु पेट ने स्पष्ट रूप से कुछ भी भोजन ग्रहण करने से मना कर दिया था । सुधीर बिस्तर पर लेट गया लेकिन नींद नहीं आ रही थी । रात-भर करवटें बदलता रहा । सोचने लगा कि मैं इतना दुखी आज क्यों महसूस कर रहा हूं ? शरीर इतनी बुरी हालत में तो पहले कभी नहीं था ? यहाँ सारी सुख सुविधाएं हैं । अच्छी कोठी है ,मनचाहा भोजन है और सबसे बड़ी बात यह है कि कोई काम भी तो नहीं करना पड़ता है।
अचानक सुधीर का मन काम न करने वाली स्थिति पर अटक गया । सोचने लगा कि कहीं मेरे शरीर की इस दुर्गति की जिम्मेदार यह कुछ भी काम न करने वाली स्थिति ही तो नहीं है ? जब से स्वर्ग में आया हूँ, कोई दौड़-धूप नहीं की । कोई शारीरिक परिश्रम नहीं किया । न सुबह उठने की जल्दी ,न बस पकड़ने का तनाव । कहीं इसी से तो सारे रोग शरीर को नहीं लग गए ? कहीं थोड़ा-सा तनाव और चिंताएं भी तो मनुष्य के शरीर के लिए आवश्यक नहीं हैं ? कहीं संघर्ष हमारी शरीर की माँग तो नहीं है ? सोचने मात्र से ही वह काँप गया । तुरंत भगवान को याद किया और प्रार्थना करने लगा ” हे भगवान ! इस स्वर्ग से मुक्ति दिलाओ । यहाँ पर तो मैं खा-खा कर बिस्तर ही पकड़ लूँगा । बिना काम किए यह शरीर किसी काम का नहीं रहेगा ! आराम ने मुझे मार डाला । ”
सुधीर की प्रार्थना सुनते ही भगवान प्रकट हो गए । कहने लगे “स्वर्ग में तुम्हें सारे सुख थे और अगर तुम चाहते तो यहीं पर रहकर आधा घंटा पैदल चलते । एक घंटा साँसो का व्यायाम करते । लेकिन तुमने तो मुफ्त का माल मिलते ही आरामतलबी ग्रहण कर ली । अब तुम्हें कौन बचा सकता है ? स्वर्ग में सब कुछ मुफ्त है लेकिन तुम्हें परिश्रम करने से किसने रोका है ? और फिर तुम्हारा यह मानव-शरीर बिना परिश्रम के जीवित भी तो नहीं रह सकता ! ”
सुधीर ने रोते हुए कहा “भगवन ! मुझे धन की आवश्यकता नहीं थी । अतः मैंने धन-प्राप्ति के लिए परिश्रम करना छोड़ दिया ।”
भगवान ने मुस्कुराते हुए कहा “परिश्रम केवल धन प्राप्ति के लिए नहीं किया जाता । परिश्रम शरीर की संरचना की माँग है । मनुष्य का शरीर ही ऐसा है कि वह बिना परिश्रम के स्वस्थ नहीं रह सकता । दिन-भर मेहनत करने के बाद ही रात को अच्छी नींद आती है । मैंने तुम्हें स्वर्ग प्रदान किया और तुमने अपने आलसीपन से उसे नर्क में बदल दिया । दोष तुम्हारा है ।”
सुधीर ने गर्दन झुका ली । भगवान से कहा ” प्रभु ! मुझे स्वर्ग में रहने का अवसर कुछ वर्षों के लिए और दीजिए । मैं स्वर्ग में रहकर भी पैदल चलूंगा । साँसों का अभ्यास करूंगा और शरीर रूपी लकड़ी पर दीमक नहीं आने दूंगा ।”
भगवान ने सुधीर को आशीर्वाद देते हुए कहा “तुम्हारा कल्याण हो ”
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451