परिवेश ( वातावरण)
अच्छे – बुरे सब घायल हैं आज I
व्यक्ति पैसों के पीछे पागल है आज ।
परिवार के परिवेश में भी पराई सोच है।
इल्जाम लगाने पर ही जोर है।
अपने है अहंकार में, रिश्ते है विवाद में।
वजूद चाहे जो हो , बस मुँह जोर का शोर है।
जिसे अपना समझकर खुश है।
वो अंदर (अन्त करण ) से रूष्ठ है।
आँक (लक्षण ) कर देखों ।
अपने में झाँक कर देखों ।
सच्चाई कैांधता ही हैं , जेहन में।
प्रश्न बनकर सम्मुख,खड़ा स्वयं में,
झूठ के झुंड में , अपने ही अस्तित्व मूल्य को, मुश्किल होता जा रहा है।
आज हरेक स्तर पर जीना मुश्किल होता जा रहा है । _ डॉ. सीमा कुमारी , बिहार (भागलपुर )