परिवार को संभाले रखते “बेटे”
कहते नहीं है, कुछ भी,
पर सब कुछ सह जाते हैं।
सब कहते हैं पढ़ाई होती है बेटियां,
पर बेटों से आंसू नजर नहीं आते।।
बचपन बीता आई जवानी,
शुरू हुई जिम्मेदारियों की कहानी।
परिवार और पत्नी के बीच,
फंसी पड़ी आगे की जिंदगानी।।
किसकी सुने और किसको सुनाएं,
अपने गमों को जी रहा छुपाए।
प्यार दुलार सब भूल गया है,
घर परिवार की चिंता में डूब गया है।।
घर से बाहर जाता कमाने,
शहर शहर की ठोकरे खाने।
जैसा भी जो काम भी आता,
बड़ी मेहनत से उसे कर जाता।।
खाना-पीना वह भूल गया है,
आराम से नाता तोड़ गया है।
पता उसे ही उसका हाल,
वह नहीं तो परिवार बेहाल।।
कहे पा”रस” बेटो पर भी थोड़ा तरस खाओ,
संस्कारी और कर्मठ बेटों पर तुम अपना सारा प्यार लुटाओ।