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14 Sep 2018 · 1 min read

परिवर्तन

परिवर्तन

क्या खो दिया है हमने
क्या पा लिया है हमने
कितने कच्चे हैं हम
अपने हिसाब के
हीरों के बदले
ठीकरों का व्यापार
किया है हमने
सुबह के उजाले
हम नींद में गंवाते हैं
अंधेरे ही अब हमें
अधिक रास आते हैं
अमृत कलश की
तलाश छोड़
ज़हर के चषक
हमें अधिक भाते है।

Language: Hindi
491 Views
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