परिवर्तन
परिवर्तन
क्या खो दिया है हमने
क्या पा लिया है हमने
कितने कच्चे हैं हम
अपने हिसाब के
हीरों के बदले
ठीकरों का व्यापार
किया है हमने
सुबह के उजाले
हम नींद में गंवाते हैं
अंधेरे ही अब हमें
अधिक रास आते हैं
अमृत कलश की
तलाश छोड़
ज़हर के चषक
हमें अधिक भाते है।